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सीएम धामी ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे0 पी0 नड्डा को, पत्र लिखकर AIIMS ऋषिकेश में, मल्टी ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी विभाग’ की स्थापना का किया अनुरोध।
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डीएम सविन बंसल का निर्देश, सभी विभाग तुरंत करें पोर्टल पर प्रगति अपडेट, देरी या बहाने क्षम्य नहीं।
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एसजीआरआरआईएमएण्डएचएस , देहरादून में कैडैवरिक ओथ समारोह संपन्न।
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सीएम धामी की अध्यक्षता में हुई मंत्रीमंडल की बैठक, कुल 19 महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर लगी मुहर।
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मुख्यमंत्री के 4 वर्ष की उपलब्धियों पर, आयोजित हुई विचार गोष्ठी, विशेषज्ञों ने मुख्यमंत्री के कार्यकाल को बताया बेमिसाल।
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सीएम धामी ने मेरी योजना’ पुस्तक पर विचार गोष्ठी व, my scheme.gov.in उत्तराखण्ड पोर्टल का किया लोकार्पण।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को, सल्ट विधायक महेश सिंह जीना ने भेंट किए, उत्तराखंड के पारंपरिक पहाड़ी उत्पाद। 
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कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने, पिथौरागढ़, डीडीहाट का किया दौरा, पैतृक गांव पहुंचकर ग्रामीणों की सुनी समस्याएं।
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स्वदेशी उद्यमिता का आधार है महिलाएं, रेखा आर्या।
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छोटे किसान खाद्य सुरक्षा की सबसे बड़ी ताकत

छोटे किसान खाद्य सुरक्षा की सबसे बड़ी ताकत

वैश्विक खाद्य सुरक्षा के साथ पोषण भी काफी जरूरी है। कृषि अर्थशास्त्रियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र का यह कहना बेहद अहम है। इसकी कई वजहें हैं। खाद्यान्न उत्पादन में भारत हमेशा से समृद्ध और सक्षम  रहा है। आजादी के वक्त भले हमारी स्थिति कमजोर थी और खाद्य सुरक्षा चुनौती थी, मगर आज हम खाद्य अधिशेष देश हैं। दूध, दाल एवं कई मसालों का सबसे बड़ा व खाद्यान्न, फल-सब्जी, कपास, चीनी, चाय व मछली का दूसरा बड़ा उत्पादक हैं। दरअसल, यह सबकुछ संभव हुआ है खेती में नई नीतियों का समायोजन करके। चूंकि भारत में छोटे किसान खाद्य सुरक्षा की सबसे बड़ी ताकत हैं इस नाते भारत वैश्विक हो रही खाद्यान्न समस्या को सही और समग्र तरीके से समझने वाला देश है औंर इसके निदान के लिए भारत के मॉडल कई देशों के काम आ सकते हैं।

देश की 70 फीसद से ज्यादा की आबादी खेती-किसानी करती है। भारतीय अर्थव्यवस्था को विस्तार और ताकत देने में खेती का बहुमूल्य योगदान है। साफ है कि कृषि हमारी आर्थिक नीतियों के केंद्र में है। जहां तक बात वैश्विक तौर पर खाद्य संकट को दूर करने की है तो भारत ने ऐसे कई उपाय तलाशे हैं, जिससे इस बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है।

इसमें प्राकृतिक खेती का चलन सबसे कारगर है। अच्छी बात है कि इसके परिणाम भी सुखद आ रहे हैं। स्वाभाविक है सरकार के लिए यह वाकई सुखकारी स्थिति है। यही वजह है कि इस बार के बजट में कृषि के सतत विकास पर बड़ा फोकस है। हां, चुनौती भी हमारे दरपेश है।
क्योंकि जलवायु में हाहाकारी बदलाव ने कृषि के रंग-ढंग को बदल कर रख दिया है। इस नाते शोध की जरूरत आन पड़ी है। हालांकि हमारा जोर शोध व नवाचार पर है और जलवायु के अनुकूल फसल की 1900 प्रजातियां हमने दुनिया को दी हैं।

पानी की कमी या चावल उत्पादन में पानी की भारी जरूरत ने यह चर्चा भी तेज कर दी है कि हमें अब ऐसी फसल के उत्पादन पर सोच-समझकर फैसला लेना होगा, जहां पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है।

इन सबके बावजूद कृषि की हमारी प्राचीन मान्यताओं के दम पर हमें यह कहने में कतई गुरेज नहीं कि वैश्विक खाद्य संकट का निदान हम ही दे सकते हैं। पूरी दुनिया हमारी काबिलियत से वाकिफ है और यही हमारी ताकत भी है।

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