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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने, जनपद बागेश्वर में प्रबुद्ध जनों, राज्य आंदोलनकारियों, एसएचजी महिलाओं व, विभिन्न संगठनों संग किया संवाद।
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मुख्यमंत्री धामी का सख्त निर्देश, जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ समय पर पात्रों तक पहुँचे, लापरवाही बर्दाश्त नहीं।
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डीएम सविन बंसल के निर्देश पर, एसडीएम एवं नगर आयुक्त ऋषिकेश के नेतृत्व में, चंद्रभागा में अवैध अतिक्रमण ध्वस्त।
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कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने, मसूरी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 20 करोड़ की लागत से, विभिन्न विकास कार्यों का किया  शिलान्यास।
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कुम्भ मेले में देवडोलियों व लोक देवताओं के प्रतीकों, एवं चल विग्रहों के स्नान और शोभा यात्रा की भव्य व्यवस्थाएं।
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डीएम सविन बंसल संग अर्ली मॉर्निंग वॉक, बढा गई बौद्धिक दिव्यांगजन का हौसला।
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धामी सरकार की बडी पहल, अब गढ़वाल मंडल भी जुडा हवाई सेवाओं से, देहरादून से टिहरी-श्रीनगर-गौचर अब हवाई मार्ग से जुड़े।
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राजभवन का नाम लोक भवन होने पर, राज्यपाल को बधाई एवं शुभकामनाएं दी, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी।
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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की, पुण्य तिथि पर उनके चित्र पर श्रद्धासुमन किए अर्पित।
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सूचना का अधिकार- पारदर्शिता की व्यापक पहचान पर ध्यान दें

सूचना का अधिकार- पारदर्शिता की व्यापक पहचान पर ध्यान दें

भारत डोगरा
मई 2005 में जब भारतीय संसद ने सूचना के जन-अधिकार का राष्ट्रीय स्तर का कानून पास किया तो लोकतंत्र को सशक्त करने वाले एक महत्त्वपूर्ण कानून के रूप में इसकी सराहना की गई। कई तरह के उतार-चढ़ाव के बाद अंत में भारत में जो राष्ट्रीय स्तर का कानून पास हुआ वह थोड़ी-बहुत कमियों के बावजूद कुल मिलाकर एक अच्छा और मजबूत कानून माना गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की दुनिया में लोकतंत्र को विश्व स्तर पर बहुत व्यापक मान्यता प्राप्त हुई। जो देश लोकतांत्रिक नहीं थे उन्होंने भी इसे अपनी कमी के रूप में स्वीकार किया और सीमित लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं अपनाने की चेष्टा की। पिछले लगभग दो दशकों में कई देशों में तानाशाहियों को समाप्त कर लोकतांत्रिक सरकारों की स्थापना हुई। पर लोकतंत्र की इस ऊपरी प्रगति के बावजूद बढ़ती संख्या में विचारवान लोगों ने  महसूस किया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था भीतर ही भीतर खोखली होती जा रही है। इसे सही अथरे में लोगों की भलाई और भागेदारी की व्यवस्था बनाने के लिए इसमें कई महत्त्वपूर्ण सुधारों की जरूरत है। सूचना के जन-अधिकार को भी ऐसे ही एक महत्त्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है जो किसी भी लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

पर क्या सूचना के अधिकार का कानून बन जाना ही पर्याप्त है? क्या मात्र इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि सरकार और प्रशासन सही मायने में पारदर्शी हैं और वे लोगों से कुछ छुपाना नहीं चाहते? अमेरिका में बहुत समय से सूचना के अधिकार/स्वतंत्रता का कानून मौजूद है, पर इसके बावजूद सरकार ने अपने सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों के संदर्भ में (विशेष तौर पर इराक पर हमले और तथाकथित आतंकवाद विरोधी युद्ध के संदर्भ में, सैन्य खर्च तेजी से बढ़ाने के संदर्भ में) पारदर्शिता नहीं अपनाई है। सच बात तो यह है कि पूरी विश्व राजनीति को बेहद प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाले इराक पर हमले संबंधी निर्णय बहुत थोड़े से सलाहकारों के एक गुट द्वारा लिए गए और आम लोगों को इनके बारे में बड़े योजनाबद्ध ढंग से गुमराह किया गया।

र्रिचड क्लार्क, जो दस वर्ष तक अमेरिका के आतंकवाद विरोधी अभियान के मुखिया रहे हैं, ने अपनी पुस्तक ‘अगेंस्ट ऑल इनमीज’ में लिखा है : ‘मुझे संदेह है कि शायद ही किसी को बुश को यह समझाने का अवसर मिला हो कि इराक पर हमला करने से अमेरिका पहले से कम सुरक्षित हो जाएगा और उग्रवादी इस्लामी आंदोलन की ताकत बढ़ जाएगी।’ क्लार्क के अनुसार आतंकवाद पर जॉर्ज बुश की प्रतिक्रिया की खास बात यह थी कि जब उन्हें आतंकवाद को पनाह देने वाले देश को सबक सिखाना था तो उन्होंने ऐसे देश को नहीं चुना जो अमेरिका विरोधी आतंकवाद पनपा रहा था, अपितु इराक को चुना जो अमेरिका विरोधी आतंकवाद फैलाने में नहीं लगा था। जब इतने शीर्ष पद पर रहा व्यक्ति पूरी जिम्मेदारी से यह लिखता है तो स्पष्ट है कि उसमें कोई गहरा दर्द है।

वैसे अमेरिकी समाज में सूचना की बाढ़ आई हुई है-किसी भी समाचार को निरंतर देने के लिए सैकड़ों प्रसार माध्यम समाचार पत्र, पत्रिकाएं, टीवी चैनल आदि मौजूद हैं। बाहरी तौर पर प्रेस की अभिव्यक्ति को गजब की स्वतंत्रता है। इसके बावजूद राष्ट्रपति बुश के दूसरे चुनाव के समय अमेरिकी जनता को एक सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में सही सूचना उपलब्ध नहीं थी। विश्व स्तर पर आम तौर पर यह जानकारी पहुंच चुकी थी कि सद्दाम हुसैन सरकार के पास न तो महाविनाशक हथियार थे और न ही उसका अल कायदा से या 9/11 के हमले से कोई संबंध था। पर इतने व्यापक और तथाकथित बेहद ‘स्वतंत्र’ सूचना तंत्र वाले अमेरिका में अधिकांश मतदाता  मानते रहे कि सद्दाम हुसैन की सरकार के पास महाविनाशक हथियार थे और उसका 9/11 के हमले से संबंध था। अमेरिकी नागरिकों की यह गलतफहमी कई सव्रेक्षणों में सामने आई। सवाल वाजिब है कि ऐसा तंत्र, जहां सूचना का अधिकार भी है, सब तरह का सूचनाओं के प्रसार की स्वतंत्रता है, बहुत से माध्यम सक्रिय हैं और अरबों डॉलरों का सूचना उद्योग है, वहां सबसे चर्चित मुद्दे पर सही जानकारी लोगों तक क्यों नहीं पंहुचती है?

स्पष्ट है कि सूचना के अधिकार का कानून बनाने के लिए तैयार हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि किसी सरकार का चरित्र मूल रूप से पारदर्शी और ईमानदार हो गया है। हां, इतना जरूर है कि सूचना के अधिकार का उपयोग सजगता और समझदारी से किया जाए तो इससे सरकार और प्रशासन को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के अवसर अवश्य उपलब्ध होते हैं। हमें कानून की संभावनाओं और सीमाओं, दोनों के प्रति सचेत रहते हुए मात्र कानून बनने से लक्ष्य प्राप्त हुआ नहीं मान लेना चाहिए। इस कानून से जो अवसर प्राप्त हुए हैं, उनका उपयोग करते हुए पारदर्शिता और लोकतंत्र को सशक्त करने के प्रयास निरंतर जारी रहने चाहिए।

यदि नागरिकों ने ऐसी सजगता और सक्रियता नहीं दिखाई तो सरकारें पारदर्शिता का प्रदर्शन अधिक करेंगी पर पारदर्शिता को आत्मसात कम करेंगी। पारदर्शिता केवल किसी सरकार या सरकारी संस्थान के लिए नहीं अपितु सभी सामाजिक संस्थानों-संगठनों और सार्वजनिक जीवन जीने वाले सभी व्यक्तियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इन सब के लिए पारदर्शिता का अर्थ किसी वैधानिक मजबूरी से कहीं अधिक व्यापक होना चाहिए। पारदर्शिता का अर्थ केवल यह नहीं है कि यदि कानून ने हमें कोई सूचना सार्वजनिक करने के लिए कहा है तो हम ऐसा करेंगे। सही अथरे में पारदर्शिता कहीं अधिक व्यापक है। हो सकता है कि कुछ समय के लिए कोई जानकारी किसी बहुत विशेष कारण से गुप्त रखना जरूरी हो जाए, पर सामान्यत: एक पारदर्शी व्यक्ति की सोच यह है कि जब मुझे हर कार्य पूरी ईमानदारी से ही करना है तो फिर उसे कुछ छिपाने की जरूरत ही क्या है। एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में मेरी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है, जो वादे करता हूं उन्हें निभाने का पूरा प्रयास करता हूं, जो कहता हूं वही करता हूं, तो फिर मैं कुछ छिपाने का प्रयास क्यों करूं।

सामान्यत: अपने निर्णय और निर्णय प्रक्रिया के बारे में पूर्ण पारदर्शिता अपनाना किसी भी ईमानदार और सच्चे व्यक्ति के अपने ही हित में है। यही कारण है कि सबसे ईमानदार व्यक्ति, चाहे वे सरकारी अधिकारी हो या किसी सामाजिक संस्था से जुड़े हो या किसी अन्य सार्वजनिक जिम्मेदारी को निभा रहे हैं, प्राय: कुछ कार्यभार बढऩे की संभावना के बावजूद पारदर्शिता लाने वाले कानून या सूचना के अधिकार के कानून का स्वागत ही करते हैं। बेईमान व्यक्ति के पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है अत: वह दिल से पारदर्शिता कभी नहीं चाहता। दूसरी ओर, ईमानदार व्यक्ति स्वभाव से ही पारदर्शिता का समर्थन करते हैं। पारदर्शिता में ईमानदारी तो निहित है ही पर उसके अतिरिक्त कुछ और भी है। वह है कथनी और करनी में भेद न होना। जो व्यक्ति पैसे के हिसाब-किताब में पूरी तरह ईमानदार है, हो सकता है उसके लिए भी अन्य संदभरे में छुपाने के लिए कुछ हो। पर जिस व्यक्ति की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है, वह पारदर्शिता की कसौटी पर और भी खरा उतरता है। पारदर्शिता को कानूनी बाध्यता के रूप में नहीं, बेशकीमती जीवन मूल्य के रूप में आत्मसात करना चाहिए।

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