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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की, पुण्य तिथि पर उनके चित्र पर श्रद्धासुमन किए अर्पित।
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दैनिक वेतन संविदा नियत वेतन अंशकालिक, तथा तदर्थ रूप में नियुक्त कार्मिकों का विनियमितीकरण नियमावली जारी।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की स्वीकृति के क्रम में, गन्ना की मूल्य वृद्धि का शासनादेश हुआ जारी। 
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डीएम सविन बंसल ने रायपुर में, EVM-VVPAT वेयरहाउस का निर्धारित, प्रोटोकॉल के अनुरूप त्रैमासिक किया निरीक्षण।
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मुख्यमंत्री धामी का सख्त निर्देश, हर माह की 5 तारीख तक समाज कल्याण की, सभी पेंशन अनिवार्य रूप से पहुँचेगी खातों में।
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दिव्यांग शिक्षकों के प्रमाण पत्रों की होगी जांच, गलत लाभ लेने वालों पर होगी कठोर कार्यवाही, डॉ. धन सिंह रावत।
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मुख्यमंत्री द्वारा प्रदत्त निर्देशों के क्रम में, सूचना महानिदेशक की अध्यक्षता में गठित समितियों द्वारा, पत्रकारों के कल्याण एवं सम्मान के लिए महत्वपूर्ण निर्णय।
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शक्ति कॉलोनी में स्वीकृत लागत, ₹303.46 लाख की सीवरेज योजना का किया शिलान्यास, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी।
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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से, परिवीक्षाधीन पीसीएस अधिकारियों ने की भेंट।
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कानून का भय ही नहीं

कानून का भय ही नहीं

आखिर देश में कानून और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का यह हाल क्यों हो गया है कि एक कंपनी उसकी तनिक परवाह नहीं करती? क्या इसका कारण गुजरे वर्षों में हुई बड़ी परिघटनाएं नहीं हैं, जिनमें कानून के राज की धज्जियां उड़ाई गई हैं? सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही इस वजह से शुरू की है कि इस कंपनी ने उसके पहले के आदेश का पालन नहीं किया। कोर्ट ने अपनी दवाओं के बारे में मीडिया में भ्रामक विज्ञापन देने से उसे मना किया था। लेकिन कंपनी ने कोर्ट में हलफनामा देने के बावजूद उसकी परवाह नहीं की। जैसाकि कि दो जजों की पीठ ने कहा, यह कंपनी अपने इश्तहार में औषधि एवं जादू-टोना उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम-1954 का उल्लंघन कर रही है।

ऐसा खुलेआम चल रहा है और केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। न्यायालय ने इस पर आक्रोश जताया। आयुष मंत्रालय से कहा- सारे देश की आंख में धूल झोंकी गई है। और आपने अपनी आंख बंद कर रखी है। दो साल से आप इस महत्त्वपूर्ण घटना (यानी न्यायिक आदेश) का इंतजार कर रहे हैं, जबकि औषधि कानून से खुद यह स्पष्ट है कि ऐसे विज्ञापन प्रतिबंधित हैं। यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट ले गया है। अब एक बार फिर से कोर्ट ने प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ऐसे विज्ञापनों के प्रकाशन या प्रसारण पर रोक लगाने को कहा है। मगर इस क्रम में यह विचारणीय है कि आखिर देश में कानून और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का यह हाल क्यों हो गया है कि एक कंपनी उसकी तनिक परवाह नहीं करती? क्या इसका कारण गुजरे वर्षों में हुई बड़ी परिघटनाएं नहीं हैं, जिनमें खुद सत्ता-तंत्र के ऊंचे स्तरों पर बैठे लोगों के संरक्षण में कानून के राज की धज्जियां उड़ाई गई हैं?

जब एक स्तर पर ऐसी घटना होती है और सरकार से लेकर न्यायपालिका तक उसकी परवाह नहीं करतीं, तो फिर सबको यही संदेश जाता है कि कानून सबके लिए समान नहीं है, ना ही यह सबसे ऊपर है। पतंजलि आयुर्वेद जैसी कंपनियां धन और सत्ता-तंत्र तक पहुंच के लिहाज से प्रभावशाली मानी जाती हैं। ऐसे में अगर उसके अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनादर किया, तो उसे आज के व्यापक संदर्भ में रखकर ही देखा जाएगा। उस संदर्भ में जिसमें रसूखदार लोग खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं।

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