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चकराता में हुई सीजन की दूसरी बर्फबारी, पर्यटक स्थलों पर उमड़े लोग, व्यवसायियों के खिले चेहरे 
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मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने, राज्य में गोबरधन योजना के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु, पेयजल, पशुपालन, उरेडा, डेयरी, कृषि विभाग की जिम्मेदारी तय की।
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उत्तराखंड में मौसम विभाग का अलर्ट, आज कई जिलों में बारिश और बर्फबारी की संभावना।
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कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने, स्वामी विवेकानन्द पब्लिक स्कूल के 38वें, वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में किया प्रतिभाग।
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श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के कैंसर जागरूकता शिविर का, हरिद्वारवासियों ने उठाया लाभ।
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा, बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के खिलाफ, की गई टिप्पणियों विरोध में अखिल भारतीय अम्बेडकर युवा संघ, व वाल्मीकि समाज ने डीएम के माध्यम से महामहिम, राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन प्रेषित किया, लालचंद शर्मा।
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तमन्ना भाटिया के प्रशंसकों को मिला तोहफा, ‘ओडेला 2’ का नया पोस्टर जारी
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कानून का भय ही नहीं

कानून का भय ही नहीं

आखिर देश में कानून और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का यह हाल क्यों हो गया है कि एक कंपनी उसकी तनिक परवाह नहीं करती? क्या इसका कारण गुजरे वर्षों में हुई बड़ी परिघटनाएं नहीं हैं, जिनमें कानून के राज की धज्जियां उड़ाई गई हैं? सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही इस वजह से शुरू की है कि इस कंपनी ने उसके पहले के आदेश का पालन नहीं किया। कोर्ट ने अपनी दवाओं के बारे में मीडिया में भ्रामक विज्ञापन देने से उसे मना किया था। लेकिन कंपनी ने कोर्ट में हलफनामा देने के बावजूद उसकी परवाह नहीं की। जैसाकि कि दो जजों की पीठ ने कहा, यह कंपनी अपने इश्तहार में औषधि एवं जादू-टोना उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम-1954 का उल्लंघन कर रही है।

ऐसा खुलेआम चल रहा है और केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने भी इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है। न्यायालय ने इस पर आक्रोश जताया। आयुष मंत्रालय से कहा- सारे देश की आंख में धूल झोंकी गई है। और आपने अपनी आंख बंद कर रखी है। दो साल से आप इस महत्त्वपूर्ण घटना (यानी न्यायिक आदेश) का इंतजार कर रहे हैं, जबकि औषधि कानून से खुद यह स्पष्ट है कि ऐसे विज्ञापन प्रतिबंधित हैं। यह मामला इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट ले गया है। अब एक बार फिर से कोर्ट ने प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ऐसे विज्ञापनों के प्रकाशन या प्रसारण पर रोक लगाने को कहा है। मगर इस क्रम में यह विचारणीय है कि आखिर देश में कानून और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का यह हाल क्यों हो गया है कि एक कंपनी उसकी तनिक परवाह नहीं करती? क्या इसका कारण गुजरे वर्षों में हुई बड़ी परिघटनाएं नहीं हैं, जिनमें खुद सत्ता-तंत्र के ऊंचे स्तरों पर बैठे लोगों के संरक्षण में कानून के राज की धज्जियां उड़ाई गई हैं?

जब एक स्तर पर ऐसी घटना होती है और सरकार से लेकर न्यायपालिका तक उसकी परवाह नहीं करतीं, तो फिर सबको यही संदेश जाता है कि कानून सबके लिए समान नहीं है, ना ही यह सबसे ऊपर है। पतंजलि आयुर्वेद जैसी कंपनियां धन और सत्ता-तंत्र तक पहुंच के लिहाज से प्रभावशाली मानी जाती हैं। ऐसे में अगर उसके अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनादर किया, तो उसे आज के व्यापक संदर्भ में रखकर ही देखा जाएगा। उस संदर्भ में जिसमें रसूखदार लोग खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं।

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