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मुख्यमंत्री ने विभिन्न विकास योजनाओं के लिए, 68.26 करोड की धनराशि का किया अनुमोदन।
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सैनिक स्कूल घोड़ाखाल ने राष्ट्र को, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत युवा देने में रचा स्वर्णिम इतिहास, सीएम धामी।
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डाकरा बाजार के सुधारीकरण और चौड़ीकरण कार्यों के संबंध में की बैठक, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी।
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साधन की चिंता छोड़ मन को साधें खिलाड़ी, रेखा आर्या।
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डीएम सविन बंसल का एक्शन देख ठिठके बैंक के कदम, 24 घंटे के भीतर असहाय पुत्री प्रीति के नाम जारी किया 3.30 लाख रुपये का चेक। 
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देहरादून में होगा जनसंपर्क का “महाकुंभ, 47वीं ऑल इंडिया पब्लिक रिलेशंस कॉन्फ्रेंस 13 से 15 दिसंबर तक।
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मुख्यमंत्री.धामी ने किया, 112 करोड़ की योजनाओं का लोकार्पण शिलान्यास।
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एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज एटलिटिका -2025 में, प्रद्यूमन ने लगाई सबसे लम्बी छलांग।
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सीएम धामी ने उत्तराखंड के प्रथम मुख्यमंत्री, नित्यानंद स्वामी की पुण्यतिथि पर उनके चित्र पर श्रद्धासुमन  किए अर्पित।
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बहुमत गंवाने की तलवार

बहुमत गंवाने की तलवार

एनडीए अगर एकजुट रहा, तो भी सहयोगी दलों के तेवर गुजरे दस वर्षों जैसे नहीं रहेंगे। ऐसे में गठबंधन और सरकार का नेतृत्व करना एक नए तरह के कौशल की मांग करेगा। नरेंद्र मोदी ऐसे कौशल के लिए नहीं जाने जाते। दो राज्यों- उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षाओं और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे पर तगड़ा प्रहार किया। इनके अलावा कई और राज्यों ने पार्टी के वर्चस्व में सेंध लगाई। इनमें हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड एवं कुछ अन्य राज्यों का जिक्र किया जा सकता है। भाजपा को ओडिशा, तेलंगाना, और यहां तक कि केरल में भी अनपेक्षित सफलताएं मिलीं।

लेकिन यह कामयाबी जिन राज्यों ने उसे झटका दिया, उसकी भरपाई करने लायक नहीं है। नतीजा यह है कि पार्टी के हाथ से बहुमत निकल गया है। बल्कि बहुमत से उसकी दूरी अच्छी-खासी है। हालांकि भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को जरूर स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन अब जो सियासी उभरी है, उसमें कौन किस गठबंधन में रहेगा, यह फिलहाल अनिश्चित हो गया है। फिलहाल निश्चित यह है कि एनडीए अगर एकजुट रहा, तो भी सहयोगी दलों के तेवर गुजरे दस वर्षों जैसे नहीं रहेंगे। ऐसे में गठबंधन और सरकार का नेतृत्व करना एक नए तरह के कौशल की मांग करेगा। नरेंद्र मोदी ऐसे कौशल के लिए नहीं जाने जाते। उनकी पहचान आदेशात्मक अंदाज में शासन करने वाले नेता की रही है।

इसीलिए एनडीए को बहुमत मिलने और भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद मोदी-शाह की जोड़ी के लिए पहले की तरह राज करना आसान नहीं होगा। अत: कहा जा सकता है कि 2024 के जनादेश से देश के राजनीतिक गतिशास्त्र में भारी बदलाव आ सकता है। इस चुनाव ने इस धारणा को तोड़ दिया है कि आरएसएस के एजेंडे और मोनोपॉली कॉरपोरेट के साथ उसके गठजोड़ ने भारतीय राजसत्ता पर अपना अटूट शिकंजा कस लिया है।

नरेंद्र मोदी इसी शिकंजे का प्रतीक समझे जा रहे थे। इस शिकंजे में प्रधानमंत्री का भरोसा इतना गहरा था कि जन-कल्याण के एजेंडे को वे ‘रेवड़ी’ बताने लगे। इसकी कीमत उनकी पार्टी को चुकानी पड़ी है। नतीजतन, मोदी अब अपने पुराने अंदाज में राज नहीं कर पाएंगे। वे किस अंदाज में शासन करते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। अब उन्हें हमेशा यह याद रखना होगा कि बहुमत गंवाने की तलवार उनके सिर पर लटकी हुई है।

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