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रामलीला मैदान दिल्ली में, वोट चोर गद्दी छोड़’ महारैली में, उत्तराखंड कांग्रेस से हजारों कार्यकर्ताओं ने कियाप्रतिभाग, राजीव महर्षि।
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स्वास्थ्य सेवाओं में नवाचार और उत्कृष्ट कार्यों के लिए, डॉ. आर. राजेश कुमार को पीआरएसआई राष्ट्रीय सम्मान।
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मराठी बनाम हिंदी विवाद पर, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन बोले, भाषाई नफरत से बचे महाराष्ट्र, नहीं तो थम जाएगा विकास।

मराठी बनाम हिंदी विवाद पर, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन बोले, भाषाई नफरत से बचे महाराष्ट्र, नहीं तो थम जाएगा विकास।

मराठी बनाम हिंदी विवाद पर बोले राज्यपाल – विविधता ही हमारी ताकत, हर भाषा का हो सम्मान।

देहरादून/मुंबई :- महाराष्ट्र में चल रहे भाषा विवाद को लेकर राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने गहरी चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भाषाई आधार पर फैल रही नफरत न केवल सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ेगी, बल्कि राज्य के औद्योगिक विकास और निवेश पर भी प्रतिकूल असर डालेगी। राज्यपाल ने सभी से संयम बरतने और भाषाओं को लेकर सम्मान का भाव रखने की अपील की।

एक कॉफी टेबल बुक के विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए राज्यपाल राधाकृष्णन ने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर आप मुझ पर हमला करें तो क्या मैं तुरंत मराठी में बात करने लगूंगा?” उन्होंने आगाह किया कि यदि भाषाई टकराव को बढ़ावा दिया गया तो राज्य में निवेशक पीछे हट सकते हैं और इसका सीधा असर विकास पर पड़ेगा।

राज्यपाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि तमिलनाडु में सांसद रहने के दौरान उन्होंने देखा कि एक समूह ने दूसरे समूह पर हमला किया क्योंकि वे तमिल में बात नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा, “मैं खुद हिंदी नहीं समझता, यह मेरे लिए एक चुनौती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दूसरों की भाषा का अनादर किया जाए। हमें विविध भाषाओं को सीखने और अपनी मातृभाषा पर गर्व करने की जरूरत है।”

राज्यपाल की इस टिप्पणी पर शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने प्रतिक्रिया दी और कहा कि राज्य में भाषाई भेदभाव जैसी कोई स्थिति नहीं है। साथ ही उन्होंने राजनीतिक बयानबाजी से बचने की बात कही।

महाराष्ट्र में भाषा विवाद क्या है?

अप्रैल में महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाए जाने की घोषणा की थी, जिसे लेकर मराठी समर्थक संगठनों ने विरोध जताया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार हिंदी थोप रही है। बाद में सरकार ने निर्णय में आंशिक संशोधन करते हुए हिंदी को तीसरी भाषा बताया, लेकिन एक शर्त जोड़ी गई कि दूसरी भाषा के विकल्प के लिए कम से कम 20 छात्रों का सामूहिक आवेदन होना जरूरी होगा, जिसे शिक्षा विशेषज्ञ अव्यावहारिक मानते हैं।

इस विवाद के बीच महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं द्वारा गैर-मराठी बोलने वालों पर हिंसक घटनाएं भी सामने आईं। मुंबई और पुणे में ऐसे मामले दर्ज किए गए, जहां मराठी न बोलने पर दुकानदारों और आम नागरिकों पर हमले हुए।

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