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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने, जनपद बागेश्वर में प्रबुद्ध जनों, राज्य आंदोलनकारियों, एसएचजी महिलाओं व, विभिन्न संगठनों संग किया संवाद।
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मुख्यमंत्री धामी का सख्त निर्देश, जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ समय पर पात्रों तक पहुँचे, लापरवाही बर्दाश्त नहीं।
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डीएम सविन बंसल के निर्देश पर, एसडीएम एवं नगर आयुक्त ऋषिकेश के नेतृत्व में, चंद्रभागा में अवैध अतिक्रमण ध्वस्त।
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कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने, मसूरी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 20 करोड़ की लागत से, विभिन्न विकास कार्यों का किया  शिलान्यास।
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कुम्भ मेले में देवडोलियों व लोक देवताओं के प्रतीकों, एवं चल विग्रहों के स्नान और शोभा यात्रा की भव्य व्यवस्थाएं।
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डीएम सविन बंसल संग अर्ली मॉर्निंग वॉक, बढा गई बौद्धिक दिव्यांगजन का हौसला।
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धामी सरकार की बडी पहल, अब गढ़वाल मंडल भी जुडा हवाई सेवाओं से, देहरादून से टिहरी-श्रीनगर-गौचर अब हवाई मार्ग से जुड़े।
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राजभवन का नाम लोक भवन होने पर, राज्यपाल को बधाई एवं शुभकामनाएं दी, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी।
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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की, पुण्य तिथि पर उनके चित्र पर श्रद्धासुमन किए अर्पित।
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जमीनी हालात एनडीए के अनुकूल नहीं

जमीनी हालात एनडीए के अनुकूल नहीं

हरिशंकर व्यास
लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के इतना कुछ करने के बावजूद बिहार में अब भी उम्मीद है। जमीनी हालात एनडीए के अनुकूल नहीं दिख रहे हैं। नरेंद्र मोदी की लहर या अयोध्या की राम लहर का ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि मतदाता किसी लहर से प्रभावित होकर या भावनात्मक मुद्दे के असर में वोट डालने की मंशा नहीं जाहिर कर रहे हैं।

ध्यान रहे पिछली बार के चुनाव में राज्य की 40 में से 39 सीटें एनडीए को मिली थीं। भाजपा 17 सीटों पर लड़ी थी और सभी सीटों पर जीती थी। एक सीट सिर्फ नीतीश की पार्टी हारी थी। रामविलास पासवान की पार्टी भी अपने कोटे की छह सीटों पर जीत गई थी। इस बार हर कोई मान रहा है कि सीटें कम होंगी। जनता दल यू को ज्यादा नुकसान की संभावना जताई जा रही है। इसका कारण यह भी है कि इस बार भाजपा को रोकने के विपक्षी अभियान की शुरुआत बिहार से ही हुई थी।

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के साथ विपक्षी गठबंधन बनाने के जब प्रयास शुरू हुए तो सबसे पहले बिहार के ही नेताओं ने कहा था कि अगर 50 सीटें कम कर दी जाएं तो मोदी सरकार बहुमत गंवा देगी। तब नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा था कि यह तो नंबर का खेल है और इस बार विपक्ष मोदी के नंबर्स कम कर देगा। उसके बाद ही आंकड़ों के खेल शुरू हुआ कि कहां से कितनी सीटें कम हो सकती हैं। नंबर्स के इस खेल में बिहार हमेशा अहम रहा। बिहार के अलावा बड़े राज्यों में कर्नाटक और महाराष्ट्र में भाजपा के नंबर्स कम होने की संभावना तभी से देखी जा रही है।

भाजपा और नरेंद्र मोदी को हरा कर सत्ता से बाहर कर देने के बरक्स यह एक दूसरा नैरेटिव था कि उसकी 40-50 सीटें कम कर दी जाएं। यह नैरेटिव बनने के बाद मोदी को समझ में आया कि ऐसा हो सकता है। तभी सबसे पहले यह सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले नीतीश कुमार को तोडऩे का प्रयास शुरू हुआ।

उनकी पार्टी के नेताओं पर दबाव डाल कर या करीबी कारोबारियों पर कार्रवाई के जरिए भाजपा कामयाब हो गई। उसने नीतीश को फिर से गठबंधन में शामिल कर लिया। लेकिन इस बार नीतीश के पाला बदलने का बहुत सकारात्मक असर नहीं दिखा। लोगों में नाराजगी दिखी। भाजपा के अपने काडर में भी नीतीश को लेकर दूरी का भाव है। तभी एनडीए में तालमेल पहले जैसा नहीं है।

भाजपा बनाम जदयू और जदयू बनाम लोजपा की लड़ाई में कई सीटों पर भितरघात है। कहीं भाजपा के सवर्ण मतदाता नीतीश के उम्मीदवारों को हराने का दम भर रहे हैं तो कहीं जदयू के कोर मतदाता इस बार चिराग पासवान से 2020 के विधानसभा चुनाव का बदला निकालना चाहते हैं तो कहीं चिराग के मतदाता नीतीश के उम्मीदवारों को हराने का संकल्प जाहिर कर रहे हैं।

असल में 2020 में चिराग पासवान ने भाजपा का समर्थन किया था और नीतीश के हर उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा था, जिससे नीतीश की पार्टी सिर्फ 43 सीट जीत पाई थी। बाद में नीतीश ने चिराग की पार्टी में विभाजन करा दिया था। सो, दोनों पार्टियों को कोर समर्थक एक दूसरे के खिलाफ स्टैंड लिए हुए हैं।

इस बार नीतीश जब से भाजपा के साथ लौटे हैं, तब से भाजपा के इकोसिस्टम से ही उनके ऊपर सबसे ज्यादा हमले हुए हैं। बिहार के लोग यह भी देख रहे हैं कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने अपनी पगड़ी नहीं खोली है। उन्होंने यह पगड़ी इस संकल्प के साथ बांधी थी कि नीतीश को सत्ता से हटा कर ही इसे खोलेंगे। इससे भी भाजपा और जदयू दोनों के समर्थकों में कंफ्यूजन है।

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